सद्गुरुदेव-सत्संग-संकलन
सत्संग नित अरु ध्यान नित, रहिये करत संलग्न हो।
व्यभिचार, चोरी, नशा, हिंसा, झूठ तजना चाहिये॥

बन्दौं गुरुपद कंज, कृपासिन्धु नररूप हरि।  

महामोह तमपुंज, जासु वचन रविकर निकर।।

 अर्थ- कृपा के समुद्र, मनुष्य के रूप में ईश्वर, जिनका वचन महामोह-रूप अन्धकार-राशि को (नाश करने के लिए) सूर्य की किरणों का समूह है, ऐसे गुरु के चरण-कमल को मैं प्रणाम करता हूँ।


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संतमत में ईश्वर की स्थिति

वेद पुरान संतमत भाखौं

ब्रह्मलोक में भी दुःख है

अन्तर में डूबने से चैन

मुक्ति और उसकी साधाना

ईश्वर इन्द्रिय ज्ञान से परे

मेरे गुरुजी ने कहा था

स्थूल से सूक्ष्म में प्रवेश का द्वार

 बाबा साहब के उपदेशों का सार

ध्यान-योग की महिमा