सद्गुरुदेव-सत्संग-संकलन
सत्संग नित अरु ध्यान नित, रहिये करत संलग्न हो।
व्यभिचार, चोरी, नशा, हिंसा, झूठ तजना चाहिये॥
बन्दौं गुरुपद कंज, कृपासिन्धु नररूप हरि।
महामोह तमपुंज, जासु वचन रविकर निकर।।
अर्थ- कृपा के समुद्र, मनुष्य के रूप में ईश्वर, जिनका वचन महामोह-रूप अन्धकार-राशि को (नाश करने के लिए) सूर्य की किरणों का समूह है, ऐसे गुरु के चरण-कमल को मैं प्रणाम करता हूँ।